Background / Origin of Astrology
Astrology is derived from two words namely “Astro” & “Logy” means study of stars or language of stars, which is being used to determine the impact of the nine planets on the living & non living things / organisms. Also known as “Jyotish”, was emanated from Lord Brahma, the creator, who passed it on to the Narad Muni, who in turn further imparts this knowledge to the various rishis & muni’s. Maharishi Parashara , grandson of maharishi Vashistha and a great devotee of Lord shiva was considered to be as the source of all astrological knowledge bequeathed to the mankind. In earlier times , astrological knowledge was generally not documented & taught only on the basis of shruti (heard) & smriti (memorize) . For instance , Maharishi Parashara taught Astrology to his disciple Maitreya Rishi in the form of Question & Answer. Later on , Maharshi Veda Vyas , son of Parashara rishi & mata satyavati (Matsya –Gandha), codified , expanded , explained & written various vedas namely Rig Veda; Yajur Veda; Sama Veda & Atharva Veda. Among various classics ; there is a very famous treatise called Brihata Parashara Hora Shastra (BPHS) that has defined / interpreted various sanskrit verses (shlokas) to give glimpse to the readers about the various astrological principles . The book has been written vis-à-vis interpreted differently by different authors. Using this ancient science / knowledge, one can easily & accurately determine / forecasts his / her life pattern which otherwise would be difficult to anticipate or foresee unless & until some divine interventions / blessings are there. If the defined principles are properly & correctly applied, then one can also precisely estimate the timing of an event. With the use of astrology , one can’t change his / her destiny but would be able to do future planning effectively. There are total 09 planets ; 12 Houses; 27nos Nakshatras & 12 signs (rashis) that forms the horoscope / birth chart. Maharshi parashara has also prescribed the virtues & qualities of an Astrologer i.e. a person desirous to be an astrologer must possess qualities like good in mathematics; mastery over language; moral uprightness; judicial balance; intellectual; ability to look / analysis an event from different angles; knowledge of different geographies / traditions/cultures /social conditions.
Astrology is mainly divided into three branches / Skandhas –
- Ganita (Siddhanta)– It is that branch of astrology which is dealt with the pure mathematics & focused on the calculation of the planetary positions in the sky / celestial sphere. In modern times, popularly known as “Astronomy” .There are total of 18 nos different sidhantas are written /available , however, amongst them “Surya Sidhanta” is the most popular one which is being extensively used by the astrologers for doing predictions.
- Samhita (Mundane)– Under this, predictions are being done not for an individual but country / world as a whole, in terms of people, government, policies, health, finances, war, climate, resources, natural calamities, epidemics etc. It shows those rare and strange events, which, otherwise, are quite difficult, to anticipate or foresee.
- Hora (individual)– Most popular branch of astrology as it deals with the predictions / forecasting of various events like marriage; education; profession; children; achievements; period of distress etc about individuals,
Apart from above three categories, with the passage of time as well as further development of astrology, two more branches are also being added to its folds, namely Shakuna (Omen) and Prashana (question) making Astrology as “Panch Skandha “
ज्योतिष की पृष्ठभूमि / उत्पत्ति
ज्योतिष शास्त्र एक ऐसा विज्ञानं है जिसका उपयोग हमारे सौरमंडल में सूर्य के साथ-साथ सभी 9 ग्रहों एवं जीवित और गैर-जीवित वस्तुओं / जीवों पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ने वाले इनके प्रभावों के अध्ययन के लिए किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि “ज्योतिष” की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से हुई जिन्होंने इस विद्या को नारद मुनि को हस्तांतरित किया, जिन्होंने आगे चलकर इस ज्ञान को विभिन्न ऋषियों और मुनियों को प्रदान किया। महर्षि वशिष्ठ के पौत्र महर्षि पराशर जो भगवान शिव के महान भक्त भी थे, आज मानव जाति को प्रदत्त सभी ज्योतिषीय ज्ञान के स्रोत माने जाते हैं । पहले के समय में, ज्योतिषीय ज्ञान को आमतौर पर केवल श्रुति (सुनी) और स्मृति (याद) के आधार पर पढ़ाया जाता था, इसके लिखित आलेख बहुत कम उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए, महर्षि पराशर ने अपने शिष्य मैत्रेय ऋषि को प्रश्न और उत्तर के रूप में ज्योतिष का ज्ञान प्रदान किया । बाद में, पराशर ऋषि और माता सत्यवती (मत्स्य-गंधा) के पुत्र महर्षि वेद व्यास ने विभिन्न वेदों ऋग्वेद, यजुर्र वेद, साम वेद और अथर्ववेद को संहिताबद्ध, विस्तारित कर लिखित रूप में संकलित किया। विभिन्न उत्कृष्ट ग्रंथों के बीच, बृहत् पाराशर होरा शास्त्र (BPHS) नामक प्रसिद्ध ग्रंथ विभिन्न ज्योतिषीय सिद्धांतों को विभिन्न संस्कृत छंदों (श्लोकों) के रूप में परिभाषित / व्याख्यित कर पाठकों के लिए संकलित किये हुए है ।
विभिन्न पुस्तकों में अलग-अलग लेखकों द्वारा अलग-अलग तरह से ज्योतिष की व्याख्या की गई है। इस प्राचीन विज्ञान / ज्ञान का उपयोग करते हुए, मनुष्य की जीवन पद्धति का आसानी से और सटीक रूप से पूर्वानुमान/ निर्धारण किया जा सकता है अन्यथा मनुष्य के लिए तब तक पूर्वानुमान करना मुश्किल है जब तक कुछ दिव्य हस्तक्षेप / आशीर्वाद न हों। यदि परिभाषित सिद्धांत ठीक से और सही ढंग से लागू किए जाएं, तो कोई भी किसी भी घटना के समय का सटीक अनुमान लगा सकता है। ज्योतिष मुख्यतः विभिन्न गणनाओं पर आधारित वास्तविक विज्ञानं होता है। ज्योतिष के उपयोग के साथ व्यक्ति घटनाओं को तो परिवर्तित नहीं कर सकता, परन्तु भविष्य की योजना को प्रभावी ढंग से अपने जीवन में अपनाकर क्षमता के साथ योजनाबद्ध तरीके से जीवन व्यतीत ज़रूर कर सकता है । ज्योतिष गणना सौर मंडल के कुल 09 ग्रह पर आधारित होती हैं; इसके लिए एक विशेष खाका तैयार किया जाता है जिसे जन्मकुंडली कहते है। जन्मकुंडली 12 गृह, 12 राशियाँ और 27 नक्षत्रों से मिलकर बनती है। महर्षि पराशर ने ज्योतिषी के गुणों को भी निर्धारित किया है अर्थात् एक ज्योतिषी बनने के इच्छुक व्यक्ति को गणितीय विश्लेषण की क्षमता, भाषा पर महारत, नैतिक ईमानदारी, न्यायिक संतुलन, बौद्धिक क्षमता, किसी भी घटना को विभिन्न कोणों से देखने / विश्लेषण करने की क्षमता, विभिन्न भौगोलिक / परंपराओं / संस्कृतियों / सामाजिक परिस्थितियों के ज्ञान आदि गुणों से सुशोभित होना चाहिए ।
ज्योतिष को मुख्य रूप से तीन शाखाओं / स्कन्ध में विभाजित किया गया है -
- गणिता (सिद्धान्त) – यह ज्योतिष की वह शाखा है जो शुद्ध गणित से संबंधित है और आकाश / आकाशीय क्षेत्र में ग्रहों की स्थिति की गणना पर केंद्रित है। आधुनिक समय में, लोकप्रिय रूप से इसे “खगोल विज्ञान” के रूप में जाना जाता है। कुल मिलाकर 18 नग अलग-अलग प्रकार के होते हैं, जो लिखित रूप में उपलब्ध हैं, हालांकि, उनमें से “सूर्या सिद्धान्त” सबसे लोकप्रिय है जो भविष्यवाणियों के लिए बड़े पैमाने पर ज्योतिषियों द्वारा उपयोग किया जा रहा है।
- संहिता (मुंडन) – इसके तहत, लोगों, सरकार, नीतियों, स्वास्थ्य, वित्त, युद्ध, जलवायु, संसाधनों, प्राकृतिक आपदाओं, महामारियों आदि के संदर्भ में किसी व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि देश / दुनिया के लिए भविष्यवाणियां की जा सकती हैं । यह उन दुर्लभ और अजीब घटनाओं को दर्शाता है, जिनका पूर्वानुमान या पूर्वाभास काफी कठिन हैं।
- होरा (व्यक्तिगत) – यह ज्योतिष की सबसे लोकप्रिय शाखा है, क्योंकि यह शादी, शिक्षा, व्यवसाय, बच्चे, उपलब्धियों; व्यक्तियों पर संकट की अवधि जैसी विभिन्न घटनाओं की भविष्यवाणियों / पूर्वानुमान से संबंधित है।
उपर्युक्त तीन श्रेणियों के अलावा, समय बीतने एवं ज्योतिष के और विकास के साथ, दो और शाखाएँ भी इसमें जुड़ गयी हैं, जो हैं शकुना (ओमेन) और प्रश्न ज्योतिष; इन को “पंच स्कन्ध” के रूप में जाना जाता है ।
“He is a very good teacher & more so a very generous & kind human being …”
Sparsh Aryastudent
“Your teaching of mundane astrology ; Ashtakvarga & Muhurata was really an eye opening
experience for me and it has helped me in significant improvement in my analysis.”
Vijay Bharathwal
“I highly recommend to all the prospective / interested students or
learners who genuinely having interest in exploring the deep secrets of astrology , Amit sir is your
man / teacher to rely on……..”
Harsh GaurComputer Engineer
“I strongly recommend Amit Ji for his pedagogy & clarity of concepts to any institution / individual
working or having deep interest in this area”.
Dr. Deepa Sharma
” I highly recommend Mr Amit to
any organization or individual for his unmatchable & professional consulting / teaching style
besides deep understanding of the Indian Vedic System”.
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